नवरात्रि का रहस्य
नवरात्र ‘शब्द से नव आहोरात्रों (विशेष रात्रियों) का बोध होता है। इस समय शक्ति के
नवरूपों की उपासना की जाती है। ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक है। भारत के प्राचीन ऋषि
मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है इसलिए दीपावली,
होलिका,शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परम्परा है। यदि
रात्रि का कोई विशेष महत्व न होता तो ऐसे उत्सवों को ‘रात्रि’ न कहकर ‘दिन’ ही कहा जाता लेकिन नवरात्र के दिन, ‘नवदिन’ नहीं कहे जाते।
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले
दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी
तक और इसी प्रकार ठीक छ: मास बाद अश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतीपदा से महानवमी अर्थात
विजयादशमी के एक दिन पूर्वतक । परन्तु
सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है।
इन
नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार
के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं।
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