Wednesday 22 July 2020

अयोध्या विवाद के प्रमुख चरित्र भाग1 ( The main characters of AYODHYA dispute part 1 )

अयोध्या विवाद के कुछ ऐसे चरित्र हैं, जो उसकी हर करवट में दर्ज हैं । लेकिन लोकस्मृति में वो गुमनाम हैं । बड़े बड़े आंदोलनकारी नामों ने उन्हें इतिहास के कालपात्र में ढेकल दिया है । पर अयोध्या उन्हें जानती है । इस विवाद को समझने के लिए इनसे आपकी पहचान जरूरी है , ये सभी इस विवाद की नींव में है लेकिन नींव की ही तरह पूरी तरह दिखाई नही देते है ।

(1) जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर 


दिल्ली का पहला मुगल बादशाह ( 1526-30 )  इसी के राज में बाबरी मस्जिद बनी थी । बाबर के पिता तैमूर लंग के वंशज और माँ कुलमुत निगार खाँ चंगेज खाँ के परिवार से थी  । 1483 में जनम लेने के बाद महज 11 साल की उम्र में बाबर पिता का वारिस बना । उसकी जागीर फरगना अब चीनी तुर्किस्तान में है । 21 अप्रैल , 1526 को इब्राहिम लोदी को मारकर बाबर दिल्ली को शासक बना । अपने पिता की हत्या के बाद ही उसने रोजाना डायरी में नोट्स लेने शुरू कर दिए थे । यही डायरी पाँच शताब्दी तक गुम रहने के बाद ' बाबरनामा ' बनी । इस डायरी में 18 साल का रिकॉर्ड नष्ट हो गया है, इसीलिए इसमें बाबरी मस्जिद का जिक्र नहीं है । डायरी में बाबर ने 25 मई, 1529 की एक घटना का जिक्र किया है । " एक रात जब पाँच घड़ियाँ बीत चुकी थीं । मैं लिखने में व्यस्त था, उसी समय अचानक आँधी आई , मैं अपनी चीजें सँभाल पाता, तभी तंबू घसक गया । मेरे सिर में चोट आयी । किताब के पन्ने पानी से तर बतर हो गए । बड़ी मुश्किल से किताब के बाकी पन्ने सँभाल पाया । " उसकी डायरी तुर्की भाषा में लिखी गयी थी जिसका अकबर ने फारसी भाषा में अनुवाद करवाया ।


(2) मीर बाकी 

बाकी ताशकंदी को मीर बाकी के नाम से जाना जाता है । वह बाबर का सेनापति था । शिया मुसलमान मीर बाकी ताशकंद ( मौजूदा समय में उजबेकिस्तान की राजधानी ) का रहने वाला था। बाबर ने उसे अवध प्रांत का गवर्नर बनाकर भेजा था । मीर बाकी ने 1528 से 1529 के बीच रामजन्म स्थान पर बाबरी मस्जिद बनवाई थी । मार्च 1528 से जून 1529 तक मीर बाकी अयोध्या में ही रहा । फैजाबाद ( वर्तमान में अयोध्या ) के सहनवा गाँव में मीर बाकी ने दम तोड़ा था । यहीं उसकी मजार भी है ।


(3) अभिराम दास 


दरभंगा, बिहार के रहने वाले नागा वैरागी अभिराम दास उस समूह के नेता थे, जिन्होंने 22-23 दिसंबर, 1949 की रात को विवादित इमारत में रामलला की मूर्ति स्थापित की थी । रामानंदी संप्रदाय के इस नागा वैरागी का संबंध निर्वाणी अखाड़े से था । लंबे और बलिष्ठ अभिराम दास पढ़े लिखे नहीं थे । वे कुश्ती लड़ते थे । अखाड़े के दाँव-पेंच जानते थे । अयोध्या में उन्हें लड़ाकू साधु कहा जाता था । वे हिंदू महासभा के सदस्य थे, इसीलिए महंत दिग्विजय नाथ के करीबी थे । उन्हें रामजन्मभूमि का " उद्धारक बाबा " कहा जाता है । मूर्तियाँ रखने के खिलाफ जो एफ.आई.आर हुई, उसमें इन्हें मुख्य अभियुक्त बनाया गया था । उनका निधन 1981 में हुआ ।

(4) देवरहा बाबा

भारतीय संत परंपरा के अलौकिक साधु । उत्तरप्रदेश के देवरिया के पास लार में सरयू किनारे रहते थे । महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग में पारंगत । बाबा कहाँ से आए, कब जन्म हुआ, उनका जीवन आजतक लोगों के बीच रहस्य है । बाबा निर्वस्त्र रहते थे । रामभक्त थे । सरयू और गंगा के किनारे मचान बना पानी में ही रहते थे । देश-विदेश की नामी हस्तियाँ बाबा की भक्त थीं । राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी बाबा का आशीर्वाद लेने जाते थे । इंदिरा गांधी के सामने जब कोई समस्या आती तो समाधान के लिए बाबा के पास जाती थी । जनवरी 1984 में इलाहाबाद ( अब प्रयागराज ) कुंभ के मौके पर उस धर्मसंसद की अध्यक्षता बाबा ने ही की थी, जिसमें राममंदिर के शिलान्यास की तारीख 9 नवंबर, 1989 तय हुई थी । शिलान्यास के गतिरोध के बीच प्रधानमंत्री राजीव गांधी बाबा से मिलने गए । देवरहा बाबा ने राजीव गांधी से कहा, " बच्चा हो जाने दो "। बाबा के ही आदेश पर ही पार्टी में विरोध के बावजूद राजीव गांधी ने शिलान्यास करवाया ।

(5) स्वामी करपात्री जी महाराज 

करपात्री जी सन्यासी नेता थे । स्वामी करपात्री जी का असली नाम हरनारायण ओझा था । 
उन्हें  "धर्म सम्राट" कहा जाता था   अंजुली में जितना भोजन समाता, उतना ही भोजन करने के कारण वे करपात्री कहलाए । स्वामी जी उन साधुओं में नहीं थे, जो एकांत गुफा में बैठ मूक साधना करते थे । सनातन धर्म की रक्षा और पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को रोकने के लिए उन्होंने आंदोलन चलाए ।  संस्थाएँ बनाईं । अखबार निकाला और 1966 में गोहत्या के खिलाफ संसद पर साधुओं के प्रदर्शन का नेतृत्व किया, इसी प्रदर्शन पर इंदिरा गांधी ने जम्मू कश्मीर पुलिस की टुकड़ी बुलवा कर गोलियां चलवाईं थीं क्यों की इंदिरा गांधी को डर था की दिल्ली पुलिस संतों पर गोली चलाने से मना ना कर दे । इस सरकरी हत्याकांड में दर्जनों साधु मारे गए थे । उनकी किताब " मार्क्सवाद और रामराज्य " बहुचर्चित हुई जिसे गीता प्रेस गोरखपुर ने प्रकाशित किया था । उन्होंने प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के संरक्षण के लिए " धर्मसंघ शिक्षामंडल " बनाया । उन्होंने बनारस और कलकत्ते में ' सन्मार्ग ' अखबार निकाला । विधिवत सन्यासी बनने के बाद उन्होंने राजनीति में धर्म की स्थापना के लिए दंड उठाया । 
उन्होंने रामराज्य परिषद नाम का राजनैतिक दल बनाया । एक समय इस दल के लोकसभा में चार सदस्य थे और राजस्थान विधानसभा में 24 सदस्य थे । 
रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन की नींव करपात्री जी ने ही रखी थी । बलरामपुर के राजा पटेश्वरी प्रसाद सिंह, महंत दिग्विजय नाथ और गोंडा के कलेक्टर के.के.के. नायर ने करपात्री जी के सामने ही रामजन्मभूमि की मुक्ति का संकल्प लिया था ।

(6) महंत दिग्विजय नाथ जी 

महंत दिग्विजय नाथ क्रांतिकारी साधु थे । वे अयोध्या के बाबरी ढाँचे में मूर्ति रखने वाले समूह में शामिल थे । आजादी की लड़ाई में "चौरा-चौरी" कांड के वे मुख्य अभियुक्त थे । वे नागपंथी कनफटा साधुओं की शीर्ष पीठ गोरक्षपीठ के महंत थे । जिस पीठ पर आजकल उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं । वे हिंदू महासभा के राज्य अध्यक्ष भी थे । दिग्विजय नाथ उदयपुर के उसी राणा परिवार से आए थे, जिसमें बप्पा रावल और महाराणा प्रताप का जन्म हुआ । उनके बचपन का नाम राणा नान्हू सिंह था । दिग्विजय नाथ पढ़े - लिखे और राजनैतिक सूझ बुझ वाले साधु थे । वे लॉन टेनिस में माहिर थे ।

(7) महाराजा पटेश्वरी प्रसाद सिंह 

गोंडा के ' बलरामपुर स्टेट ' के महाराज पटेश्वरी प्रसाद सिंह के राजभवन में ही अयोध्या में रामजन्मभूमि को मुक्त कराने की रणनीति बनी । 
महाराज अपनी हिंदू भावनाओं के कारण करपात्री जी और महंत दिग्विजय नाथ के नजदीक थे ।
1 जनवरी 1914 को जनमे पटेश्वरी प्रसाद की पढ़ाई अजमेर के मेयो कॉलेज में हुई । ब्रिटिश अफसर कर्नल हैंसन के संरक्षण में वे पले - बढ़े । घुड़सवारी और लॉन टेनिस के लिए वे दूर दूर तक जाते थे । के.के.के. नायर और दिग्विजय नाथ से दोस्ती का एक आधार लॉन टेनिस के प्रति तीनों का लगाओ भी था । महाराज अकसर धार्मिक यज्ञ करते । इन्हीं धार्मिक यज्ञों के बहाने साधु - संतों का जमावड़ा लगता । 1947 के शुरुआती महीनों में ऐसे ही यज्ञ में महाराज के यहाँ करपात्री जी की मौजूदगी में अयोध्या आंदोलन की रणनीति बनी थी ।

(8) मोरोपंत पिंगले 


मोरोपंत पिंगले अयोध्या आंदोलन के शिल्पी थे । इस आंदोलन को रामशीलाओं के जरिये घर - घर पहुँचाने वाले मोरोपंत जी महाराष्ट्र के चित्तपावन ब्राह्मण थे । बेहद सरल और विनम्र नागपुर के मौरिस कॉलेज के स्नातक पिंगले ने हमेशा नेपथ्य से काम किया । उन्होंने एक रणनीति के तहत प्रस्तावित मंदिर के लिए तीन लाख ईंटें भारत के हर गाँव में पुजवाईं । फिर गाँव से तहसील, तहसील से जिला, जिले से राज्य मुख्यालय होते हुए ये ईंटें ( शिलाएं ) अयोध्या पहुँचीं । इस कार्यक्रम दे देश भर के कोई 6 करोड़ लोग भावनात्मक रूप से इस आंदोलन से सीधे  जुड़े । एक झटके में ये आंदोलन गाँव - गाँव , घर - घर पहुँच गया । शिलापूजन, शिलान्यास, चरण पादुका, रामज्योति यात्राएँ सब पिंगले जी के दिमाग की उपज थीं । पर वे रहे हमेशा नेपथ्य में । पिंगले जी आरएसएस के पहले सरसंघचालक डॉ.हेडगेवार के हाथों गढ़े गए थे । मोरोपंत पिंगले जी के काम की शैली थी , सूत्रधार की भूमिया में रहना, कोई श्रेय नही लेना । सभी कुछ रचना, लेकिन दृष्टि से ओझल रहना । हिंदू जनमानस की चेतना में अयोध्या को जगाने का ऐतिहासिक काम करने के लिए वे इतिहास में दर्ज हैं ।

(9) अशोक सिंघल


अशोक सिंघल आजादी के बाद देश की विराट हिंदू एकता के रणनीतिकार थे । सिंघल 20 वर्षों तक विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख रहे । 1942 में वे आरएसएस के प्रचारक बने । मीनाक्षीपुरम धर्मांतरण के खिलाफ दिल्ली के विज्ञान भवन में हुई पहली धर्मसंसद के कर्ता धर्ता वे ही थे । इसी के बाद संघ ने इन्हें विराट हिंदू सम्मेलनों का काम सौंपा । इन सम्मेलनों के अध्यक्ष कांग्रेस सांसद कर्ण सिंह होते थे । आगरा में जनमे सिंघल के पिता सरकारी कर्मचारी थे । सिंघल पढ़ाकू और प्रभावशाली वक्ता थे । वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से 1950 में धातु इंजीनियरिंग में स्नातक हुए । सिंघल गुरु परंपरा से ख्याल गायक थे । उन्होंने पंडित ओंकार नाथ ठाकुर से गायन सीखा था । पहली धर्म संसद में उन्होंने गाया ' चंदन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है, हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा बच्चा राम है । ' सिंघल के गायन की सीडी भी बनीं । अयोध्या में ताला खुलने से लेकर ध्वंस तक उस आंदोलन के केंद्रीय पुरुष वही थे ।

(10)  के.के.के. नायर 

केरल के अलप्पी के रहने वाले के.के.के. नायर 1930 बैच के आई.ए.एस अफसर थे । फैजाबाद ( वर्तमान में अयोध्या ) के जिलाधिकारी रहे, इन्हीं के कार्यकाल में बाबरी ढाँचे में मूर्तियाँ रखी गईं या यों कहें , इन्होंने ही रखवाई थी ।बाबरी मामले से जुड़े आधुनिक भारत के वे ऐसे शख्स हैं, जिनके कार्यकाल में उस मामले में सबसे बड़ा 'टर्निंग पॉइंट' आया और देश के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर इसका दूरगामी असर पड़ा । मद्रास विश्वविद्यालय से पढ़े - लिखे नायर तमिल, मलयाली, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, समेत फ्रेंच, जर्मन, रसियन, स्पेनिस, आदि भाषाओं के जानकार थे । 1 जून, 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियाँ मस्जिद में स्थापित की गईं तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से फौरन मुर्तियों को हटवाने के लिए कहा । उत्तरप्रदेश सरकार ने भी मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट के.के.के. नायर ने दंगो और हिंदू भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पालन करने में असमर्थता जताई । साथ ही परिसर में ताला बंद कर मुसलमानों को वहां जाने से रोक दिया । जब नेहरू ने दुबारा मूर्तियाँ हटाने को कहा, तो के.के.के. नायर ने सरकार को लिखा मूर्तियाँ  हटाने से पहले मुझे हटाया जाए । देश के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई । डीएम के.के.के. नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली ।
चौथी लोकसभा के लिए वे उत्तरप्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुँचे । इस इलाके में नायर हिंदुत्व के इतने बड़े प्रतीक बन गए थे कि उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज से तीन बार जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुँचीं । उनका ड्राइवर भी उत्तरप्रदेश विधानसभा का सदस्य बना ।



7 comments:

  1. बहुत महत्वपूर्ण जानकारी आपने दिया है भैया, धन्यवाद

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  2. बहुत बहुत आभार भाई मेरे

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  3. बहुत सुन्दर और ऐतिहासिक जानकारी।

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  4. धन्यवाद गुरु जी

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  5. बहुत बढ़िया बच्चे ।। एक एक अक्षर नपा तुला

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  6. इसके आगे के लोगों का भी योगदान जोड़ों इस कड़ी में महंत धर्मदास, महंत नृत्यगोपाल दास,अवैद्यनाथ

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  7. आगे के अंकों की प्रतीक्षा कीजिये । कोई नही छूटेगा, जय श्री राम

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योगेश्वर श्रीकृष्ण

                                                       ।।।।  जय श्री कृष्णा ।।।।                                                            ...