Wednesday 5 August 2020

अयोध्या विवाद के प्रमुख चरित्र भाग 2 ( The main characters of AYODHYA dispute part 2

(11) हनुमान प्रसाद पोद्दार 
जिस समूह ने 22-23 दिसंबर की रात बाबरी ढाँचे में मूर्तियां रखी थी, हनुमान प्रसाद पोद्दावर जी उसके इंतेजामकर्ता थे। प्यार से दोस्त प्रिय उन्हें 'भाई जी' कहते थे । भाई जी के ही जिम्मे उस रोज मूर्तियों की स्थापना और प्राणप्रतिष्ठा के इंतेजाम थे । सहज विनम्र और धर्म के लिए कुछ भी कर जाने वाले भाई जी हिंदुत्व के प्रबल समर्थक थे । गीताप्रेस , पुस्तकें और भाई जी एक दूसरे के पर्याय थे । सेठ जयदयाल गोयनका ने गीताप्रेस की स्थापना की थी । जिसे हनुमान प्रसाद पोद्दावर ' भाई जी ' ने वट वृक्ष का रूप दिया । वे क्रांतिकारी चितरंजन दास, अरविंद , सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और विपिन चंद्र पाल जी के संपर्क में भी थे , इसीलिए अंग्रेजों से भाई जी को बांकुड़ा जिले के शिमलापाल गाँव में 21 दिनों तक नजरबंद भी रखा था । उन्होंने ' कल्याण ' पत्रिका का राम जन्मभूमि अंक निकाल कर इस आंदोलन को रफ्तार दी ।

(12) महंत रामचन्द्रदास परमहंस 
रामचन्द्रदास परमहंस अयोध्या आंदोलन के इकलौते चरित्र हैं, जो मूर्तियाँ रखे जाने से लेकर ध्वंस तक की घटनाओं के मुख्य किरदार थे ।
छपरा ( बिहार ) के भगेरन तिवारी के बेटे चंद्रेश तिवारी जब 1930 में अयोध्या आये तो आयुर्वेदाचार्य थे । दिगंबर अखाड़े की छावनी में जब वे परमहंस रामकिंकरदास से मिले तो उनका नाम पड़ा  ' रामचन्द्रदास ' और काम मिला रामजन्मभूमि मुक्ति का । 15 साल की उम्र में ही वे साधु बन गए ।
सन्  1934 में वे इस आंदोलन से जुड़े । वे हिंदू महासभा के शहर अध्यक्ष भी थे । सन् 1975 में वे पंच रामानंदीय दिगंबर अखाड़े के महंत बने और सन् 1989 में रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष । वे संस्कृत के अच्छे जानकार थे । वेदों और भारतीय शास्त्रों में उनकी अच्छी पैठ थी । वे मुँहफट, आक्रामक और मजबूत संकल्पशक्ति वाले जिद्दी साधु थे । सन् 1949 में मूर्ति रखने वालों की टोली में वे जूनियर सदस्य थे । 1 जनवरी , 1950 को विवादित इमारत ओर मालिकाने हक और पूजापाठ के अधिकार को लेकर उन्होंने फैजाबाद की अदालत में मुकदमा दायर किया । अप्रैल, 1984 में नई दिल्ली में हई पहली धर्मसंसद परमहंस रामचन्द्रदास जी की अध्यक्षता में श्री रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ । सन् 1985 में उन्होंने घोषणा की थी कि ताला नही खुला तो वे आत्महत्या कर लेंगे । दिगंबर रामानंद सम्प्रदाय का प्रमुख अखाड़ा है।
1990 में कारसेवकों के जिस जत्थे ओर तत्कालीन मुलायम यादव सरकार ने गोली चलवाईं उसकी अगुवाई परमहंस रामचन्द्रदास ही कर रहे थे ।
31 जुलाई, 2003 को अंतिम साँस तक वे रामजन्मभूमि के लिए लड़ते रहे ।

(13) नानाजी देशमुख 


11 अक्टूबर, 1916 को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोलि कस्बे में जनमे चंडिका दास अमृतराव देशमुख को देश नाना जी के नाम से जानता है ।
नाना जी मूर्ति रखे जाते वक़्त अयोध्या में मौजूद थे । नानाजी का लम्बा और घटनापूर्ण जीवन अभावों में बीता । लेकिन अभावों के बावजूद उन्होंने बिरला इंस्टीट्यूट  से उच्च शिखा प्राप्त की । 1930 में वे आरएसएस में शामिल हो गए । 1940 में वे अपना घरबार त्याग कर आजीवन समाज सेवा में लग गए । आज देशभर में शिखा की मजबूत चेन सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना नानाजी ने गोरखपुर में की थी । अप्रैल 1974 में सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान पटना के गांधी मैदान में जब जेपी पर लाठियां चली तो नानाजी ने उनके ऊपर लेटकर उन्हें बचाया था । 6 दिसंबर  1992 में जब बाबरी मस्जिद का ढाँचा गिराया गया तो उन्होंने कहा की ये दुर्भाग्यपूर्ण था, ये प्रस्तावित कारसेवा का हिस्सा नही था लेकिन इसके लिए क्षमाशील होने की जरूरत नहीं थी ।
2019 में नाना जी देशमुख को भारतरत्न से सम्मानित किया गया ।

(14) बाबा राघवदास 


 कांग्रसी होने के बावजूद बाबा राघवदास की रामजन्मभूमि आंदोलन में अटूट आस्था थी । विवादित इमारत में मूर्ति रखने वाले पंच प्यारों में वे भी थे । पुणे के राघवेंद्र शेषप्पा पाचापुचकर को कांग्रेस राजनीत में और जन्मभूमि आंदोलन में बाबा राघवदास के नाम से जाना जाता है । वे चित्तपावन ब्राह्मण थे ।1891 के प्लेग में राघवेंद्र शेषप्पा पाचापुचकर के पूरे परिवार का सफाया हो गया, 
 उसके बाद वे उस वक़्त के मशहूर संत मौनी बाबा के पास पहुँचे और दीक्षा ग्रहण की । उसके बाद वे 
 योगिराज अनंत महाप्रभु के सानिध्य में भी रहे ।
 1920 में वे कांग्रेस में शामिल हुए, 1948 में अयोध्या विधानसभा में उपचुनाव हुआ । पंडित गोविंद बल्लभ पंत को आचार्य नरेंद्र देव से हिसाब चुकता करना था । काँग्रेस ने आचार्य के खिलाफ बाबा को मैदान में उतार दिया । पंडित जी ने को कांग्रेसी मुख्यमंत्री होने के बावजूद राममंदिर मुद्दे के पक्ष में आक्रामक प्रचार किया क्यों की आचार्य नरेंद्र देव को अयोध्या और फैजाबाद के मुसलमानों का समर्थन प्राप्त था । कांग्रेस ने प्रचारित किया की नरेंद्र देव मंदिर के विरोधी हैं, आचार्य बाबा से चुनाव हार गए । यह भारतीय लोकतंत्र में ' राममंदिर ' मुद्दे का पहला टेस्ट था ।

(15) गोपाल सिंह विशारद 


गोपाल सिंह विशारद फैजाबाद के रहने वाले हिंदुत्ववादी वकील थे । विशारद उनकी डिग्री थी । किसी विषय में प्रवीण होने के बाद ही उन्हें विशारद की डिग्री मिली थी । व हिन्दू महासभा के फैजाबाद इकाई के सचिव थे । अयोध्या आंदोलन से सीधे जुड़ वहाँ की गतिविधियों के लिए हिन्दू महासभा ने एक संगठन बनाया था - ऑल इंडिया रामायण महासभा, विशारद इसके संयुक्त सचिव थे । विशारद ने ही विवादित इमारत में मूर्तियाँ रखे जाने के बाद 5 जनवरी, 1950 को फैजाबाद की अदालत से  मूर्तियाँ ना हटाए जाने का आदेश सरकार को दिलवाया था ।
वे अयोध्या विवाद के मूल मुकदमे के वादी थे । जब मूर्तियाँ रखी जा रही थी  । उसी रात वे फैजाबाद की एक प्रेस में ' भगवान प्रगट हो गए हैं, जन्मभूमि चलो ', इस अपील के पर्चे छपवा रहे थे ।

(16) गुरुदत्त सिंह 


गुरुदत्त सिंह 1949 में फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट थे । अपनी धुन के पक्के इस प्रांतीय सिविल सेवा के अफसर की हिन्दू महासभा से करीबी थी । इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक गुरुदत्त सिंह ने नौकरी में कभी भी हैट नही लगाई वे हमेशा पगड़ी पहनते थे । जिलाधिकारी नायर की तरह ही गुरुदत्त सिंह भी अयोध्या की विवादित इमारत में मूर्तियाँ रखने वालों को सुविधाएं मुहैय्या करवा रहे थे । दरअसल वे इस कथानक के रचयिता भी थे ।
उनके बेटे गुरुबसंत सिंह के मुताबिक उनके घर पर अकसर रात में जिलाधिकारी नायर और अभिरामदास जी के साथ मूर्तियाँ रखने की रणनीति बनती थी । गुरुबसंत उस समय 15 साल के थे । उनके मुताबिक जब मूर्तियाँ रात में रखी गईं, उस सुबह पिताजी भगवान के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर रहे थे, '' प्रभु जो हो रहा है हो जाने दीजिये '', जिस ढाँचे को तोड़ा गया, उसके गर्भगृह में रामलला के अलावा गुरुदत्त सिंह की तस्वीर भी लगी थी ।

(17) अब्दुल बरकत 

यही सज्जन 22 और 23 दिसंबर की रात को विवादित इमारत की गार्ड ड्यूटी पर थे । इनकी ड्यूटी 12 बजे से थी लेकिन ये जनाब ड्यूटी पर 1 बजे पहुँचे, जब ये पहुँचे तब इनकी नजरों में चमत्कार हो चुका था । इनके पूर्ववर्ती गार्ड शेरसिंह ने योजना को अंजाम दिलवा दिया था । चूँकि ये ड्यूटी पर देर से आये थे, इसलिए इन्होंने पुलिस को वही कहानी बताई जो इन्हें मूर्ति रखने वालों ने बताई । अब्दुल बरकत ने पुलिस से कहा कि , " यकायक मैंने मस्जिद के अंदर तेज रोशनी देखी मेरी आँखे चौंधियाँ गईं । मुझे कुछ समझ नही आ रहा था । जब रोशनी कम हई तो मैंने यह चमत्कार देखा, वहाँ भगवान राम अपने तीन भाइयों के साथ प्रगट हुए थे ।"

(18) मुहम्मद इस्माइल

मूर्ति रखे जाते वक्त इस्माइल बाबरी मस्जिद के मुअज्जिन थे । मुअज्जिन का काम होता है नमाज के लिए अजान देना, चूँकि इस मस्जिद में नमाज नही होती थी, इसलिए अजान देने की जिम्मेदारी इनपर नही थी, ये उस जगह की साफ सफाई का काम देखते थे । 22 दिसंबर की रात जब बाबा अभिराम दास और दूसरे नागा बाहुबली जब इमारत में मूर्ति लेकर आते है तो इस्माइल से उनकी हाथापाई होती है । इस्माइल ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो बैरागियों ने इनकी पिटाई कर दी , उसके बाद वे डर के मारे कभी इस राह पर लौट कर नही आये ।

(19) प्रिया दत्त राम

प्रिया दत्त राम 1949-50 में फैजाबाद अयोध्या म्युनिसिपिल बोर्ड के अध्यक्ष थे । मूर्तियाँ रखे जाने के बाद जिलाधिकारी ने बाबरी इमारत को झगड़े के अंदेशे में अपने कब्जे में ले लिया । प्रिया दत्त राम को उस संपत्ति का ' रिसीवर ' बनाया गया ।5 जनवरी, 1950 को बाबू प्रिया दत्त राम ने इमारत का जिम्मा सँभाला । उसकी देखरेख और अंदर पूजा-पाठ की एक कार्ययोजना जिलाधिकारी को सौंपी । प्रिया दत्त राम ने अपनी रिपोर्ट में कहा की रामलला एक देवता हैं, जिन्हें रोज खाने, नहलाने और वस्त्र पहनाने की जरूरत है । इसलिए मंदिर में पुजारियों और भंडारी की नियुक्ति होनी चाहिए और इनके लिए एक गेट का ताला खोला जाना चाहिए। 
रिसीवर की रिपोर्ट पर चार पुजारी और एक भंडारी की नियुकि हुई । इनके लिए इमारत का एक छोटा दरवाजा खोला गया , जिससे अंदर जाकर वो पूजा-पाठ कर सके । मंदिर समर्थकों ने रामजन्मभूमि कार्यशाला में इनकी तस्वीर भी टाँग रखी हैं ।

(20) महंत अवेद्यनाथ 

महंत अवेद्यनाथ राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के पहले अध्यक्ष थे । विवाद के हल के लिए सरकारों से सबसे ज्यादा बातचीत करने वालों में से एक थे । वे पाँच बार लोकसभा के सदस्य रहे । चंद्रशेखर और विश्वनाथ प्रताप सिंह से इनके करीबी रिश्ते थे । उत्तराखंड के पौढ़ी जिले में जनमें कृपाल सिंह बिष्ट 1940 में अवेद्यनाथ बन गए और 1942 में दिग्विजय नाथ जी के उत्तराधिकारी नियुक्त हुए । 1969 में दिग्विजयनाथ जी की  मृत्यु के पश्चात ये नाथपंथी कनफटा सम्प्रदाय की शीर्ष गद्दी गोरक्षनाथ पीठ पर बैठे । अवेद्यनाथ मंदिर निर्माण के लिए उच्च अधिकार प्राप्त समिति राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष भी रहे । 6 दिसंबर,1992 के ध्वंस के मुख्य आरोपियों में महंत अवेद्यनाथ भी रहे । वे हिन्दू महासभा से पहली बार चौथी लोकसभा में चुने गए । उसके बाद तीन बार लगातार गोरखपुर लोकसभा से सांसद बनते रहे । महंत अवेद्यनाथ जी  गोरखपुर की मनीराम विधानसभा सीट से पाँच बार विधायक भी रहे ।






योगेश्वर श्रीकृष्ण

                                                       ।।।।  जय श्री कृष्णा ।।।।                                                            ...