भीड़ में भी हो अकेला खोये ना तो क्या करे?
जिसकी जान जा रही हो , रोये ना तो क्या करे?दूर होके उससे मेरा ,मन करे तो क्या करे?
उसकी यादों कि ये माला,तोड़े पिरोए क्या करे?
संगिनी ही साथ नहीं , मन ये धीरज खोये ना तो क्या करें?
असुओं की धार से, मन भिगोए ना तो क्या करें?
ज़िंदगी ही खंडहर है , महल बनाके भी ये क्या करे?
जिसकी जान जा रही हो , रोये ना तो क्या करे?
दूध से तो कुछ ना हुआ , छाछ से जले रहे,
दोस्त भी तो दुश्मनों के संग ही मिले रहे ,
जिनको देखना ना चाहा , मिलते हमसे वो गले रहे,
प्यार के जो रस्ते चले मौत में पले रहे,
संगी साथी दूर सारे, नयन भिगोये ना तो क्या करे
जिसकी जान जा रही हो , रोये ना तो क्या करे?
-- विनीत मिश्रा --
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