Sunday, 1 December 2024

ना मोहब्बत इस कदर होती

 ना मोहब्बत इस कदर होती ,

ना ज़िंदगी दर बदर होती ,
की हम भी चुन लेते मोती,
जो निगहों में तू नहीं होती ,

ना मोहब्बत इस कदर होती ,
ना ज़िंदगी दर बदर होती ,

यू जीते शान से हा हम ,
ना जाते जान से हा हम ,-२
यहाँ गर तू नहीं होती ,
ना ज़िंदगी दर बदर होती ,

ना मोहब्बत इस कदर होती ,
ना ज़िंदगी दर बदर होती ,

खुदी को आंक लेते हम ,
उसी से माँग लेते हम,-२
दुआ में तू नहीं होती ,
तो झोली ये भरी होती ।

ना मोहब्बत इस कदर होती ,
ना ज़िंदगी दर बदर होती ,

जो तेरा देखा था सपना ,
वही तो मेरा था अपना, - २
आहों में तू नहीं होती ,
ना ज़िंदगी दर बदर होती ।

ना मोहब्बत इस कदर होती ,
ना ज़िंदगी दर बदर होती ,

जो लिपटकर गले मिले होते,
ये घाव सब सिले होते -२
ये कलम ना आसुओं से तर होती ,
तू मेरे संग अगर होती ।

ना मोहब्बत इस कदर होती ,
ना ज़िंदगी दर बदर होती ,

ये मौसम ख़ुशनुमा होता ,
हम पर भी कोई फ़ना होता ,-२
ये ज़िंदगी ख़ाली नहीं होती
जो मोहब्बत जाली नहीं होती

ना मोहब्बत इस कदर होती ,
ना ज़िंदगी दर बदर होती ,

कदम में आसमा होता ,
जो संग संग तू चला होता ,-२
तू मेरे सैंग खड़ी होती ,
जो ख़ुद से तू लड़ी होती ।

ना मोहब्बत इस कदर होती ,
ना ज़िंदगी दर बदर होती ,

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