भारत में एक और बीमारी है जो कि जान लेवा है जिसको कहते है politicaly correct होना, मतलब की सभी लोग ये चाहते है कि सभी मुझको अच्छा ही कहे, चाहे उसके लिए मुझे झूठ को सच ही क्यों ना बोलना पड़े ।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण उस समय देखने को मिला जब जम्मू कश्मीर राज्य से धारा 370 और 35A को हटाया गया,
तब कुछ polticaly correct नामक वायरस से ग्रस्त लोगों ने ये बोलना शुरू कर दिया कि
जम्मू कश्मीर की जमुरियत, कश्मीरियत और इंसानियत पर प्रहार किया गया है ।
मुझे आजतक ये समझ में नही आया कि वो कौन सी कश्मीरियत, जमुरियत और इंसानियत थी जिसकी वजह से 10000 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों का कत्ल हुआ??
मुझे आजतक समझ में नही आया कि अगर जम्मू कश्मीर में इंसानियत थी तो क्यों टीका लाल टफरु को मार कर उनकी लाश के चारों ओर वहां की स्थानीय मुस्लिम जनता नाच रही थी??
अगर कश्मीर का बहुसंख्यक समुदाय इतना ही अच्छा था तो जिस रात ये कत्लेआम हुआ उस रात मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से तेज आवाजों में अजान क्यों दी जा रही थी??
वो लोग जो धारा 370 और 35A हटने पर इतना मातम मना रहे है उनसे यही सवाल है कि क्यों आप लोग कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम पर चुप थे??
मेरा सवाल सुप्रीम कोर्ट से भी है की एक अखलाख की मौत हुई ( जो की गलत नही और उसके अपराधियों को सजा होनी ही चाहिए भारतीय सम्विधान के दायरे में ) तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा की ये mob linching बर्दाश्त नही की जाएगी और उसका स्वतः संज्ञान भी लिया और कार्यवाही हुई उसको मुआवजा भी मिला,
लेकिन वही सुप्रीम कोर्ट गिरीजा टिक्कू जो की कश्मीरी पंडित थी किसी तरह अपनी जान बचाकर भागी थी कश्मीर से ,
उसको वापस उसके साथी मुसलमानों ने फोन करके बुलाया उसका गैंगरेप किया और उसके शरीर के टुकड़े करके फेंक दिए तब क्यों नही बोला सुप्रीमकोर्ट की मॉबलिंचिंग नही बर्दाश्त की जाएगी ?
और तो और जब कश्मीरी पंडित 2020 में सुप्रीमकोर्ट पहुँचे की हमारी एक FIR तो करवा दीजिये कश्मीर के थानों में, तो सुप्रीमकोर्ट ने कहा की हमारे पास समय नही है इस मामले पर सुनवाई करने का और ये मामला बहुत पुराना हो चुका है ।
क्या ये सम्विधान कश्मीरी पंडितो के हितों की रक्षा के लिए नही है??
क्या गिरिजा टिक्कू , टिका लाल टफरु और हजारों कश्मीरी पंडितों की हत्या हत्या नही थी??
सवाल तो हमको उठाने पड़ेंगे तभी हमारे कश्मीरी पंडित भाइयों को न्याय मिल पायेगा ।
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