तुझको कुछ याद है क्या
तेरे मन में अब भी कुछ बात है क्या
तू मुझको देखती है तो मुँह फेर लेती है,
तेरी पास मेरी दी हुई अब भी कुछ सौगात है क्या,
तू तो कहती है सबसे की तूने मुझको भुला दिया है,
जो थे आँखों में उन आंसुओं को जला दिया है,
तू कहती है कि , तू अब पहचानती नही मुझको,
सब कहते है कि तू अब जानती नही मुझको,
पर एक अजनबी से नजरें फेर लेना समझ नही आता है,
ये बदलाव तेरा मेरे मन को बड़ा दुखाता है,
बेशक तू सोचती है कि तूने मुझको भुला दिया,
मेरी हर यादों को अपने मन से मिटा दिया,
पर पूछ अपनी उन आंखों से, जो मुझको देख कर अब भी झुक जाती हैं
तू पूछ ना अपनी काया से, जो मेरे स्पर्श से अब भी सिहर जाती है
तू पूछ अपने उन कानों से, जो मेरी आहट को अब भी पहचान जाते हैं,
तू पूछ ना अपने बालों से, जो तेरी आँखों के ऊपर बिखर जाते हैं।
तू पूछ खुद से कि, तेरे तन को ये आलिंगन का एहसास किसका है
तू पूछ खुद से कि, मन के एक कोने में अब भी वास किसका है,
जो रह रहकर जगा देता है तुझको, वो आभास किसका है,
और पूछना कभी खुद से ,
कि सबसे पहले जिसने बाहे फैलाकर तेरा स्वागत किया वो आकाश किसका है
#विनीतमिश्राpoetry
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