मैं खुद को
बहुत ही सौभाग्यशाली समझता हूँ, कि मुझे एक ऐसे विश्वविद्यालय( महात्मा गांधी काशी
विद्यापीठ) में शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसके कण-कण में देश के
प्रति सम्मान और देशप्रेम निहित हैं।।
राष्ट्र को
समर्पित यह संस्था जिसके प्रांगण में विश्व का इकलौता और सबसे अनोखा मंदिर हैं, जो
किसी धर्म का परिचायक नहीं है,अपितु संपूर्ण भारत की एकता और अखंडता को अभिव्यक्त
करता हैं।।
एक ऐसा
विश्वविद्यालय जिसके कुलगीत को पढ़ भर लेने से राष्ट्रप्रेम की एक ऐसी लहर मन में दौड़ उठती
हैं, कि उसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन हैं।।
काशी
विद्यापीठ में शिक्षा ग्रहण करने के बाद मैं अपने जीवन में क्या करूंगा, ये तो
भविष्य के गर्भ में हैं। लेकिन इतना जरूर जानता हूँ,, कि राष्ट्र के प्रति समर्पण
की जो प्रेरणा और सीख यहां मिली हैं उसको कभी भी विस्मरण नहीं करूंगा।।
आप सभी के
लिए अपने विश्वविद्यालय का कुलगीत साझा कर रहा हूँ,, जय हिंद
कुलगीत
विद्या के सिद्धपीठ जय महान, हे! जय-जय हे चिर नवीन चिर पुराण हे!
भारत की
भव्य भारती के स्वर तुम! राष्ट्रभावना
के संदेश मुखर तुम!
बलिदानों
के गुरूकुल महाप्राण हे ! जय-जय हे चिर नवीन चिर
पुराण हे !
हे अभिनव भारत के भाग्य
विधाता ! कोटि-कोटि जनता के मुक्ति प्रदाता !
जन-गण
को करते नेतृत्व-दान हे !जय-जय हे चिर नवीन चिर पुराण हे!
ऋषियों की वाणी के तुम व्याख्याता ! नूतन विद्याओं के अनुसंधाता !
आत्मा के शिल्पी संकल्पवान हे ! जय-जय हे चिर नवीन चिर पुराण हे !
गांधी के गरिमा से ओत-प्रोत तुम! शिवप्रसाद की विभूति, शक्ति-स्त्रोत तुम !
तुममें
भगवानदास मूर्तिमान हे! जय-जय हे चिर नवीन चिर पुराण हे !
कल्पना
नरेन्द्रदेव की विराट तुम !
पुण्य भूमि भारत माँ
के ललाट तुम !
दे रहे
समन्वय का दिव्य ज्ञान हे ! जय-जय हे चिर नवीन चिर पुराण हे !
इस
विद्या-मंदिर की अमर
भारती !
राष्ट्रदेवता की कर रही आरती !
ज्योतित हम
दीपवर्तिका-समान हे! जय-जय हे चिर नवीन चिर पुराण हे!
सत्य अहिंसा के हे
दृढ़ व्रतकारी !
युग-युग तक
अटल रहे मूर्ति तुम्हारी !
युग-युग तक विश्व करे कीर्ति गान हे! जय-जय
हे चिर नवीन चिर पुराण हे!
नभ में लहरायें यह
पुण्य पताक ! जिस पर है चित्र टँका भारत माँ का !
शंभू के त्रिशूल-शलाका-प्रमाण
हे ! जय-जय
हे चिर नवीन चिर पुराण हे !