1528
बाबर के एक सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में मस्जिद का निर्माण करवाया, जिसे हिंदू भगवान राम का जन्मस्थान मानते थे ।
1528-1731
इस दौरान इस इमारत पर कब्जे को लेकर दोनों समुदायों की तरफ से 64 बार संघर्ष हुए ।
1822
फैज़ाबाद अदालत के मुलाजिम हफिजुल्ला ने सरकार को भेजी रिपोर्ट में कहा की राम के जन्मस्थान पर बाबर ने एक मस्जिद बनवाई थी ।
1852
अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के शासन में यहां पहली बार किसी मारपीट की घटना का लिखित जिक्र हुआ । निर्मोही पंथ के लोगों ने दावा किया कि बाबर ने एक मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई थी ।
1855
हनुमानगढ़ी पर बैरागियों और मुसलमानों के बीच युद्ध हुआ । वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश रेजिडेंट मेजर आर्टम को अयोध्या के हालात पर एक पर्चा भेजा । इसमें पाँच दस्तावेज को लगाकर यह बताया कि इस विवादित इमारत को लेकर यहाँ अकसर हिंदू-मुसलमानों में तनाव रहता है ।
1859
ब्रिटिश हुकूमत में इस पवित्र स्थान की घेराबंदी कर दी । अंदर का हिस्सा मुस्लिमों की नमाज के लिए और बाहर का हिस्सा हिंदुओं की पूजा के लिए दिया गया।
1860
डिप्टी कमिश्नर फैजाबाद की कोर्ट में मस्जिद के खातिर रजन अली ने एक दरखास्त लगाई कि मस्जिद परिसर में एक निहंग सिख ने निशान साहिब गाड़ कर एक चबूतरा बना दिया है, जिसे हटाया जाए।
1877
मस्जिद के मुअज्जिन मोहम्मद असगर ने डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर में फिर से अर्जी देकर शिकायत की कि बैरागी महंत बलदेव दास ने परिसर में एक चरण पादुका रख दी है, जिसकी पूजा हो रही है। उन्होंने पूजा के लिए एक चूल्हा भी बनाया है। शायद यह हवन कुंड रहा होगा। अदालत ने कुछ हटवाया तो नहीं , पर महंत बलदेव को आगे कुछ और करने पर रोक लगा दी और मुसलमानों के लिए मस्जिद में जाने का एक दूसरा रास्ता बना दिया।
1885, 15 जनवरी
पहली बार यहां मंदिर बनाने की माँग अदालत में पहुँची। महंत रघुवर दास ने पहला केस फाइल किया। उन्होंने राम चबूतरा पर एक मंडप बनाने की इजाजत मांगी, जो उनके कब्जे में था। संयोग से इसी साल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना भी हुई।
1885, 24 फरवरी
फैजाबाद की जिला अदालत ने महंत रघुबर दास की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह जगह मस्जिद के बेहद करीब है। इससे झगड़े होंगे। सब जज हरिकिशन ने अपने फैसले में माना कि यहां चबूतरे पर रघुवर दास का कब्जा है। उन्होंने एक दीवार उठाकर चबूतरे को अलग करने की हिदायत दी, पर कहा मंदिर नहीं बन सकता है।
1886, 17 मार्च
महंत रघुबर दास ने जिला जज फैजाबाद कर्नल एफ.ई.ए कैमियर की अदालत में अपील दायर की। के कैमियर साहब ने अपने फैसले में कहा कि मस्जिद हिंदुओं के पवित्र स्थान पर बनी है। पर अब देरी हो चुकी है। 356 साल पुरानी गलती को सुधारना इतने दिनों बाद उचित नहीं है। सभी पक्ष यथास्थिति बनाए रखें।
1912, 20-21 नवंबर
बकरीद के मौके पर अयोध्या में गौ हत्या के खिलाफ पहला दंगा हुआ। यहां 1906 से ही म्युनिसिपल कानून के तहत गौ हत्या पर पाबंदी थी।
1934, मार्च
फैजाबाद के शाहजहाँपुर में हुई गौ हत्या के विरोध में दंगे हुए। नाराज हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद की दीवार और गुंबद को नुकसान पहुंचाया। सरकार ने बाद में इसकी मरम्मत कराई।
1936
इस बात की कमिश्नरी जाँच की गयी की क्या बाबरी मस्जिद बाबर ने बनवाई थी ।
1944, 20 फरवरी
आधिकारिक गजट में एक जाँच रिपोर्ट प्रकाशित हुई । जो 1945 में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड के फैजाबाद की रेवेन्यु कोर्ट में मुकदमे के दौरान सामने आई ।
1949, 22-23 दिसंबर
भगवान राम की मूर्ति मस्जिद के अंदर प्रगट हुई । आरोप था कि कुछ हिंदू समूहों ने यह काम किया है । दोनों पक्षों ने केस दायर किए । सरकार ने उस इलाके को विवादित घोषित कर इमारत की कुर्की के आदेश दिए, पर पूजा अर्चना जारी रही ।
1949, 29 दिसंबर
फैजाबाद के म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन प्रिया दत्त राम को विवादित परिसर का रिसीवर नियुक्त किया गया ।
1950
हिंदू महासभा के गोपाल सिंह विशारद और दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस रामचन्द्र दास ने फैजाबाद अदालत में याचिका दायर कर जन्मस्थान पर स्वामित्व का मुकदमा ठोंका । दोनों ने वहाँ पूजा पाठ की इजाजत माँगी । सिविल जज ने भीतरी हिस्से को बंद रखकर पूजा-पाठ की इजाजत देते हुए मूर्तियों को न हटाने के अंतरिम आदेश दिए ।
1955, 26 अप्रैल
हाइकोर्ट ने 3 मार्च,1955 को सिविल जज के इस अंतरिम आदेश पर मोहर लगाई ।
1959
निर्मोही अखाड़े ने एक दूसरी याचिका दायर कर विवादित स्थान पर अपना दावा ठोंका और स्वयं को राम जन्मभूमि संरक्षक बताया ।
1961
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने मस्जिद में मूर्तियों के रखे जाने के विरोध में याचिका दायर की और दावा किया कि मस्जिद और उसके आसपास की जमीन एक कब्रगाह है, जिस पर उसका दावा है ।
1964, 29 अगस्त
जन्माष्टमी के मौके पर मुंबई में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हुई । स्थापना सम्मेलन मे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर, गुजराती साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, संत तुको जी महाराज और अकाली दल के मास्टर तारा सिंह मौजूद थे ।
1984, 7-8 अप्रैल
नई दिल्ली में जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए हिंदू समूहों ने राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनाई इसके अध्यक्ष महंत अवैधनाथ बने । देशभर में रामजन्म भूमि मुक्ति के लिए रख यात्रा निकाली गईं । राम मंदिर आंदोलन ने तेजी पकड़ी ।
1986, 1 फरवरी
फैजाबाद के वकील उमेश चंद्र पांडे की याचिका पर जिला जज फैज़ाबाद के.एम पांडेय ने आदेश दिया कि मस्जिद के ताले खोल दिए जाएँ और हिंदुओं को वहां-पूजा पाठ की इजाजत मिले इस फैसले के 40 मिनट के भीतर ही सिटी मजिस्ट्रेट ने राम जन्म भूमि के ताले खुलवा दिए मुस्लिमों ने हिंदुओं को पूजा-पाठ की इजाजत मिलने पर विरोध किया ।
1986, 3 फरवरी
मोहम्मद हाशिम अंसारी में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में ताला खोले जाने के जिला जज के फैसले को रोकने की अपील की । हाशिम ने अपनी याचिका में कहा कि इस मामले में जिला जज ने बिना दूसरे पक्ष को सुने इकतरफा फैसला दिया है ।
1986, 5-6 फरवरी
मुस्लिम नेता सैयद शहाबुद्दीन ने ताला खोले जाने के खिलाफ 14 फरवरी को देश भर में शोक दिवस मनाने की अपील की । ऑल इंडिया मजलिसे मुसवरात ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की ।
1986, 5-6 फरवरी
ताला खोले जाने के खिलाफ लखनऊ में मुसलमानों की एक सभा हुई । जिसमें बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के गठन का ऐलान हुआ । मौलाना मुजफ्फर हुसैन किछौछवी को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया तथा मोहम्मद आज़म खान और जफरयाब जिलानी संयोजक बने ।
1986, 23-24 सितंबर
दिल्ली में सैयद शहाबुद्दीन की अध्यक्षता में बाबरी मस्जिद कोआर्डिनेशन कमेटी का गठन हुआ । कमेटी ने 26 जनवरी 1987 के गणतंत्र दिवस समारोह के बहिष्कार का आह्वान किया ।
1989, जून
मंदिर आंदोलन को पहली बार बीजेपी ने अपने एजेंडे में लिया । हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पारित कर अयोध्या में राममंदिर बनाने का संकल्प लिया । इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि यह आस्था का सवाल है । अदालत फैसला नहीं कर सकती ।
1989, 1 अप्रैल
विश्व हिंदू परिषद द्वारा बुलाई गई धर्मसंसद ने 30 सितम्बर को प्रस्तावित मन्दिर के शिलान्यास का ऐलान किया ।
1989, मई
विश्व हिंदू परिषद ने राममंदिर निर्माण के लिए 25 करोड़ रुपये इकट्ठा करने की योजना बनाई ।
1988, जुलाई से 1989 नवंबर
गृहमंत्री बूटा सिंह ने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर अलग अलग पार्टियों के साथ सलाह-मशविरा किया ।
1989
विश्व हिंदू परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष जस्टिस देवी नंदन अग्रवाल ने रामलला विराजमान के दोस्त की हैसियत से हाइकोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा कि मस्जिद को वहाँ से हटाकर कहीं और ले जाया जाए । सरकार ने फैजाबाद जिला अदालत में लंबित चार मुकदमों के साथ मूल मुकदमे को हाइकोर्ट की विशेष बेंच को स्थांतरित कर दिया । सबकी एक साथ हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू ।
1989, 14 अगस्त
हाइकोर्ट ने आदेश दिया की विवादित परिसर में यथास्थिति बनाए रखी जाए ।
1989, अक्टूबर-नवंबर
राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में पूरे देश से साढ़े तीन लाख रामशीलाएँ पहुँचाई गईं । इन रामशिलाओं का पूजन देश के हर गाँव में हुआ था ।
1989, 9 नवंबर
राजीव गांधी की केंद्र और नारायण दत्त तिवारी की राज्य सरकार की सहमति से अयोध्या में राममंदिर का शिलान्यास किया गया । शिलान्यास पर बिना किसी विवाद के सभी पक्षों में सहमति बनी थी। शिलान्यास प्रस्तावित मंदिर के सिंहद्वार पर हुआ ।
बाद में पता चला की शिलान्यास विवादित स्थल पर हुआ है ।
1990, 1 जनवरी
अदालत ने आदेश दिया की सर्वे कमिशन का गठन किया जाए, उसने उत्तर प्रदेश पुरातत्त्व विभाग को विवादित परिसर की तस्वीरें लेने को कहा ।
1990, फरवरी
राम जन्मभूमि स्थल पर फिर से कारसेवा का ऐलान ।
1990, जून
हरिद्वार में विश्व हिन्दू परिषद की बैठक में फैसला हुआ कि 30 अक्टूबर से अयोध्या में मंदिर का निर्माण-कार्य फिर से शुरू किया जाएगा । माहौल बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा का ऐलान किया । 25 सितम्बर को सोमनाथ से चली यह रथयात्रा 30 अक्टूबर को फैजाबाद पहुँचनी थी ।
1990, जुलाई-अक्टूबर
विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के दौरान इस विवाद पर सुलह--सफाई के लिए बातचीत का दौर चला ।
1990, 25 सितम्बर
सोमनाथ से अयोध्या के लिए भारतीय जनता पार्टी नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा शुरू हुई ।
1990, 17 अक्टूबर
भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि अगर आडवाणी की रथयात्रा रोकी गयी तो केंद्र सरकार ने समर्थन वापस ले लेगी ।
1990, 19 अक्टूबर
विवादित जमीन पर कब्जे के लिए केंद्र सरकार ने तीन सूत्रीय अध्यादेश जारी किया, ताकि उसे राम जन्मभूमि न्यास को मन्दिर निर्माण के लिए सौंपा जाए ।
1990, 23 अक्टूबर
भारी विरोध को देखते हुए सरकार ने उक्त अध्यादेश को वापस ले लिया । बीजेपी को भरोसे में लिए बिना ।
1990, 23 अक्टूबर
केंद्र सरकार के कहने पर बिहार की लालू सरकार ने रथयात्रा रोकी । आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया । भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया । विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार अल्पमत में आ गयी ।
1990, 30 अक्टूबर-2 नवंबर
विश्व हिन्दू परिषद के कारसेवक लाखों की संख्या में अयोध्या पहुँचे । कुछ कारसेवकों ने विवादित इमारत में तोड़फोड़ की । इमारत के ऊपर भगवा झंडा फहराया । मुलायम सिंह यादव की सरकार ने स्थिति को काबू में करने के लिए गोलियाँ चलवाईं । 40 से ज्यादा कारसेवक मारे गए । प्रतिक्रिया में देश के अनेक हिस्सों में दंगे भड़के । उत्तरप्रदेश के 42 से ज्यादा जिलों में कर्फ्यू लगाया गया ।
1990, 7 नवंबर
बीजेपी के समर्थन वापस लेने से विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार संसद में पराजित । चंद्रशेखर कांग्रेस के सहयोग से देश के नए प्रधानमंत्री बने ।
1990, 1 दिसंबर
ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने 22 दिसंबर को पूरे देश में अयोध्या को लेकर एक कॉन्फ्रेंस की बात कही । विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी में सुलह के लिए बैठक भी हुई, लेकिन विश्व हिन्दू परिषद ने करसेवा जारी रखने की बात कही । 1 और 4 दिसंबर को प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने दोनों पक्षों को बातचीत करने के लिए आमने सामने बिठाया । बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार भी शामिल थे। इसी बैठक में यह तय हुआ कि दोनों पक्ष अपने- अपने दावों के समर्थन में सबूत पेश करें ।
1990, 9 दिसंबर
कथित तौर पर शिवसेना के सुरेशचन्द्र नाम के एक युवक की मस्जिद को उड़ा देने की कोशिश को सुरक्षाबलों ने नाकाम किया । इस युवक को परिसर में ही गिरफ्तार कर लिया गया । इसने डायनामाइट की छड़ अपने शरीर में बाँध रखी थी ।
1990, 23 दिसंबर
विश्व हिन्दू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने अपने अपने दावों को लेकर दस्तावेज सरकार को सौंपे ।
1991, 18 जनवरी
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में मारे गए लोगों और उसके बाद हुए दंगों की जाँच के लिए एक कमेटी बनाई ।
1991
देश में आमसभा चुनाव हुए । उत्तरप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी । केंद्र में पी.वी. नरसिंह राव के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने कार्यभार सँभाला । लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी प्रमुख विपक्षी दल बनी । मंदिर आंदोलन की बदौलत उसे उत्तर प्रदेश की सत्ता मिली । इससे अयोध्या आंदोलन में और तेजी आई ।
1991, 7-10 अक्टूबर
उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन का अधिग्रहण किया । अधिग्रहित जमीन पर कुछ घरों और मंदिरों को तोड़ा गया ।
1991, 25 अक्टूबर
हाईकोर्ट ने एक आदेश में उत्तरप्रदेश सरकार को अधिग्रहित जमीन का कब्जा लेने को तो कहा , लेकिन अधिग्रहित जमीन पर किसी तरह के स्थाई निर्माण पर रोक लगा दी ।
1991, 2 नवंबर
राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक को कल्याण सिंह ने भरोसा दिया कि उनकी सरकार विवादित ढाँचे की पूरी तरह हिफाजत करेगी । परिषद ने एक मत से ढाँचे की सुरक्षा के लिए प्रस्ताव पारित किया ।
1991, 15 नवंबर
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से राष्ट्रीय एकता परिषद और हाईकोर्ट को दिए गए भरोसे के आधार पर कहा कि वह 25 अक्टूबर , 1991 के हाईकोर्ट के आदेश को कढ़ाई से लागू करे । जिसमें विवादित स्थल पर किसी भी निर्माण की मनाही थी ।
1992, फरवरी
उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में विवादित परिसर के चारों ओर रामदीवार का निर्माण शुरू किया ।
1992, मार्च
1988-89 में राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहण की गई 42.09 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि न्यास को रामकथा पार्क के लिए सौंप दी गई ।
1992, मार्च-मई
अधिग्रहण की गई उस जमीन पर बने सभी मंदिर, आश्रम और भवनों को तोड़ दिया गया । वहाँ जमीनों के समतलीकरण का काम शुरू हुआ ।
1992, मई
विवादित परिसर में खुदाई और समतलीकरण के काम पर हाईकोर्ट ने रोक लगाने से मना कर दिया ।
1992, 9 जुलाई
विश्व हिंदू परिषद ने कारसेवा फिर शुरू की , विवादित स्थल पर कंक्रीट का चबूतरा बनाना शुरू ।
1992, 15 जुलाई
हाईकोर्ट ने कारसेवा रोकने और वहाँ चल रहे इस स्थाई निर्माण पर रोक लगाने का आदेश किया ।
1992, जुलाई
सुप्रीम कोर्ट में कल्याण सिंह के खिलाफ अवमानना का मुकदमा दायर पर कारसेवा जारी रही ।
1992, 18 जुलाई
राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक हुई, जिसमें कोई नतीजा नहीं निकला । राष्ट्रीय एकता परिषद ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि हाईकोर्ट के आदेश का पालन करे और निर्माण रोके ।
1992, 23 जुलाई
सुप्रीमकोर्ट ने विवादित स्थल पर किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी । प्रधानमंत्री ने धार्मिक गुरूओं से बात कर कारसेवा रूकवाने को कहा ।
1992, 26 जुलाई
विश्व हिंदू परिषद ने 9 जुलाई को शुरू हुई कारसेवा रोकी ।
1992, 27 जुलाई
प्रधानमंत्री ने अयोध्या की स्थिति पर संसद में बयान दिया ।
1992, अगस्त-सितंबर
प्रधानमंत्री कार्यलय में अयोध्या सेल का गठन हुआ । पूर्व कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा इसके अध्यक्ष बने ।
1992, अक्टूबर
प्रधानमंत्री की पहल पर विश्व हिंदू परिषद और बाबरी एक्शन कमेटी में फिर से बातचीत शुरू । दो बैठकें हुईं ।
1992, 23 अक्टूबर
विवादित परिसर में मिले पुरात्तव-अवशेषों के अध्ययन के लिए विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेताओं की बैठक ।
1992, 30-31 अक्टूबर
धर्मसंसद और केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में 6 दिसंबर, 1992 को दोबारा कारसेवा शुरू करने का एलान हुआ ।
1992, 23 नवंबर
भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक का बहिष्कार किया । वहाँ आम सहमती से प्रस्ताव पारित हुआ , जिसमें कहा गया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के 20 नवंबर , 1992 के आदेश के तहत काम करे, यानि कोई निर्माण कार्य न हो ।
1992, 24 नवंबर
राज्य सरकार को बताए बिना केंद्र सरकार ने केंद्रीय बलों की एक कंपनी को अयोध्या भेजा ।
1992, 27-28 नवंबर
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ढाँचे की सुरक्षा के लिए एफिडेविट दिया । सुप्रीमकोर्ट ने अपना एक पर्यवेक्षक नियुक्त किया , जिसका काम यह देखना था कि कारसेवा के नाम पर वहाँ कोई स्थाई निर्माण न हो । मुरादाबाद के जिला जज तेजशंकर अयोध्या में पर्यवेक्षक बने ।
1992, 6 दिसंबर
विश्व हिंदू परिषद , भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के समर्थन से कारसेवकों द्वारा विवादित बाबरी मस्जिद गिरा दी गई । देश भर में दंगे फैलें, जिसमें 2000 से ज्यादा लोगों की जान गई । केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त किया । मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बर्खास्तगी से पहले ही अपना इस्तीफा सौंप चुके थे । शाम तक विवादित स्थल पर अस्थाई मंदिर का निर्माण हुआ मूर्तियां फिर से स्थापित की गईं । वहाँ 6 और 7 दिसंबर को राष्ट्रपति शासन के दौरान दीवार औऱ शेड का निर्माण हुआ ।
1992, 6 दिसंबर
दो एफ.आई.आर बाबरी मस्जिद विध्वंस के खिलाफ राम जन्मभूमि थाने में दर्ज की गईं । एफ.आई.आर संख्या 197 कारसेवकों और एफ.आई.आर संख्या 198 लालकृष्ण आडवाणी , मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, अशोक सिंघल सहित बीजेपी के दूसरे नेताओं के खिलाफ थी ।
1992, 7-8 दिसंबर
राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद परिसर को केंद्रीय सुरक्षा बलों ने अपने कब्जे में लिया ।
1992, 10 दिसंबर
केंद्र सरकार ने आरएसएस, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और जमाते इस्लामी पर पाबंदी लगा दी ।
1992, 15 दिसंबर
प्रतिबंधित संगठनों के साथ संबंध रखने के आरोप में केंद्र सरकार ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश की बीजेपी सरकारों को बर्खास्त किया ।
1992, 16 दिसंबर
बाबरी ध्वंस के लिए आडवाणी समेत 6 अभियुक्तों को गिरफ्तार करके ललितपुर जेल भेज दिया गया । उत्तर प्रदेश सरकार ने एफ.आई.आर. 198, जिसमें आडवाणी और सात अन्य लोग आरोपित थे, उसे ललितपुर की विशेष अदालत को सौंप दिया ।
1992, 27 दिसंबर
केंद्र सरकार ने अयोध्या के विवादित स्थल और उसके आसपास का इलाका अपने अधिकार में लेने का फैसला किया ।
1993, 7 जनवरी
अयोध्या के राम जन्मभूमि बाबरी परिसर की 67.7 एकड़ जमीन का केंद्र सरकार ने अधिग्रहण किया । इसमें अस्थाई मंदिर भी था । इसी रोज राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143(ए) के तहत सुप्रीम कोर्ट को प्रेसीडेंसियल रिफरेंस भी किया कि वे बताएँ कि क्या विवादित ढाँचे के नीचे कभी कोई मंदिर था और वहाँ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी ? सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद इस रिफरेंस को यह कहते हुए लौटा दिया कि वह इस पर राय नहीं दे सकता ।
1993, 27 फरवरी
सी.बी.सी,आ.ई,डी ने ललितपुर की विशेष अदालत में एफ.आई.आर. 198 में एक आरोप-पत्र दाखिल किया । इसमें आडवाणी और बाकी लोगों पर धारा 147,149 (153ए, 153बी और 505 के अलावा ) के तहत आरोप लगाए गए ।
1993, 11 मार्च
बाबरी ढाँचे को गिराने की कथित प्रतिक्रिया में मुंबई में बम धमाके हुए । इस विस्फोट और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में हजारों लोग मारे गए ।
1993, 6 जून
उत्तर प्रदेश सरकार ने एफ.आई,आर संख्या 198 को ललितपुर से रायबरेली की विशेष अदालत में स्थानांतरित कर दिया ।
1993, 25 अगस्त
आडवाडी के मामले में सी.बी.आई ने सी.बी.सी.आ.ई.डी की जगह ली । उत्तर प्रदेश सरकार ने दो अधिसूचनाएँ जारी कर मामले को सी.बी.आई को सौंपा । पहले में सी.बी.आई को एफ.आई.आर. संख्या 198 की जाँच की मंजूरी दी गई, जबकि दूसरे में सी.बी.आई को मीडिया पर हुए हमले की जाँच करने के लिए कहा गया ।
1993, 8 सितंबर
उत्तर प्रदेश सरकार की इलाहाबाद हाईकोर्ट से सलाह के बाद अयोध्या ध्वंस के मामलों की सुनवाई के लिए लखनऊ में विशेष अदालत का गठन हुआ ।
1993, 5 अक्टूबर
सी.बी.आई. ने पहली बार सभी अभियुक्तों के खिलाफ साजिश का मामला 120बी भी लगाया । उसने सभी 49 मामलों में एक संयुक्त पूरक आरोप-पत्र दाखिल किया ।
1997, 9 सितंबर
विशेष न्यायाधीश ने सी.बी.आई. से आरोपित 49 लोगों के खिलाफ आरोप लगाने को कहा । इनमें से 33 लोगों ने हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में पुर्नविचार की याचिका दाखिल की । आडवाणी ने कोई पुर्नविचार याचिका दाखिल नहीं की ।
1998
भारतीय जनता पार्टी को केंद्र में सत्ता मिली ।
2001 , 12 फरवरी
हाईकोर्ट ने 33 आरोपियों की पुर्नविचार याचिकाएँ स्वीकार कर लीं ।
2001, 24 जुलाई
मोहम्मद असलम उर्फ भूरे ने 12 फरवरी को हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की ।
2001, 20 अगस्त
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और सी.बी.आई. को भूरे की अपील के विरूद्ध जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा ।
2002
फरवरी में विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण फिर से शुरू करने को लिए 15 मार्च की अंतिम तारीख तय की । देश भर से कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा होने लगे ।
कारेसेवकों को वापस ले जा रही साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे एस-6 पर गुजरात के गोधरा में हमला किया गया । उस हमले में 58 कारसेवक जिंदा जला दिए गए । इस हमले के बाद पूरे गुजरात में दंगे फैल गए , जिसमें 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई ।
2002, अप्रैल
इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस बात की सुनवाई शुरू हुई कि विवादित स्थल पर किसका अधिकार है ।
2003
इलाहाबाद हाईकोर्ट की विशेष अदालत ने ए.एस.आई. को इस बात की जाँच करने को कहा कि क्या वहाँ पहले कोई मंदिर था । हाईकोर्ट ने ए.एस.आई से कहा कि वह खुदाई कर इस बात का पता लगाए । ए.एस.आई को मस्जिद के नीचे ग्यारवहीं सदी के एक मंदिर के होने के साक्ष्य मिले ।
2004
6 साल के बीजेपी को शासन के बाद केंद्र में कांग्रेस की वापसी हुई । उत्तर प्रदेश की अदालत ने कहा कि आडवाणी को निर्दोश ठहराए जाने की विवेचना होनी चाहिए ।
2005, जुलाई
कुछ संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विवादित स्थल पर आक्रमण किया । विवादित परिसर में घुसने का प्रयास कर रहे इन पाँचों आतंकवादियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया ।
2009, जून
लिब्राहन कमीशन , जिसे बाबरी विध्वंस की जाँच के लिए गठित किया गया था , ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। संसद में हंगामा हुआ, क्यों कि उसमें भारतीय जनता पार्टी के विध्वंस में शामिल होने की बात कहीं गई थी ।
2010
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दायर की गई चार याचिकाओं पर फैसला सुनाया । इस फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांट दिया जाए । एक तिहाई हिस्सा रामलला को दिया जाए, जिसका प्रतिनिधित्व हिंदू महासभा के पास है ; एक तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दिया जाए और तीसरा हिस्सो निर्मोही अखाड़े को दिया जाए । दिसंबर में अखिल भारतीय हिंदू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए ।
2011, मई
सुप्रीम कोर्ट ने जमीन के बँटवारे पर रोक लगा दी और कहा कि स्थिति को पहले की तरह बरकरार रखा जाए ।
2014
लोकसभा के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और केंद्र की सत्ता में आई ।
2015
विश्व हिंदू परिषद ने फिर राजस्थान से राममंदिर के निर्माण के लिए शिलाएं इकट्ठा करने का आह्वान किया । 6 महीने बाद विवादित स्थल पर 2 ट्रक शिलाएं पहुँच गईं । महंत नृत्यगोपाल दास ने दावा किया कि मोदी सरकार की ओर से मंदिर निर्माण के लिए हरी झंडी मिल गईं है ।
उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने कहा की अयोध्या में शिलाओं को लाने की इजाजत नहीं दी जाएगी ।
2017, मार्च
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1992 के ध्वंस को लेकर आडवाणी और अन्य नेताओं पर लगे आरोप वापस नहीं लिये जा सकते और केस की जाँच फिर से की जाए ।
2017, 12 मार्च
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला संवेदनशील है और उसका समाधान कोर्ट से बाहर होना चाहिए । सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से एक राय बनाकर समाधान ढूँढ़ने को कहा ।
2017, 5 दिसंबर
सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी , 2017 को राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर तमाम याचिकाओं पर तेजी से सुनवाई को फैसला किया ।
2018, 8 फरवरी
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को दो हफ्ते में अपने-अपने दस्तावेज तैयार करने का दिया । साथ ही यह भी कहा कि इस मामले में अब कोई नया पक्षकार नहीं जुड़ेगा । मुख्य न्यायाधीश ने कहा हम इस मामले को जमीन के विवाद की तरह ही देखेंगे ।
2018, 14 मार्च
सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले को अनावश्यक दखल से बचाने के लिए मुख्य पक्षकारों के अलावा बाकी तीसरे पक्षों की ओर से दायर सभी 32 हस्तक्षेप अर्जियों को खारिज कर दिया । अब वही पक्षकार बचे जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में शामिल थे । सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर दोनों पक्ष समझौते के लिए राजी हैं तो कोर्ट इसकी इजाजत दे सकता है, लेकिन वह किसी पक्ष को मजबूर नहीं कर सकता ।
2018, 27 सितंबर
अयोध्या मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया । फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की माँग खारिज करते हुए 'इस्माइल फारूकी' मामले को पुर्नविचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने से मना कर दिया । साल 1994 के इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने नमाज की खातिर मस्जिद को इस्लाम को अभिन्न अंग मानने से इनकार कर दिया था । मुस्लिम पक्ष का दावा था कि अयोध्या मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का साल 2010 का फैसला इस्माइल फारूकी जजमेंट से प्रभावित था , इसलिए इस पर पुर्नविचार किए बगैर अयोध्या के टाइटल सूट पर सुनवाई नहीं होनी चाहिए ।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2-1 के बहुमत से यह आदेश दिया कि "अयोध्या मामले पर इस्माइल फारूकी केस का कोई असर नहीं है और जमीन के विवाद पर निर्णय सबूतों के आधार पर किया जाएगा । " यह मत पीठ के जस्टिस दीपक मिश्र व जस्टिस अशोक भूषण का रहा । जबकि पीठ के तीसरे जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने इससे असहमति वयक्त की । उनके मुताबिक " मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं इसका फैसला धार्मिक आस्था के आधार पर होना चाहिए । इसके लिए विस्तृत विमर्श की जरूरत है ।" इस फैसले के बाद अयोध्या मामले की सुनवाई अब तीन जजों की पीठ ही करेगी ।
9 नवंबर 2019
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय विशेष बेंच ने फैसले में ASI का हवाला देते हुए कहा की बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी खाली जगह पर नही किया गया था, विवादित जमीन के नीचे एक ढांचा था और यह इस्लामिक ढांचा नही था । सुप्रीम कोर्ट के कहा की पुरातत्व विभाग की खोज को नजरअंदाज नही किया जा सकता है । सुप्रीम कोर्ट ने सम्पूर्ण 67.7 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को देने का फैसला सुनाया साथ ही रामजन्मभूमि पर राममंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट का गठन करने का आदेश केंद्र सरकार को दिया और सुप्रीम कोर्ट ने यह भी फैसला दिया कि मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन भी दी जाए ।