#अंतर्द्वन्द
आज पहली बार एहसास हुआ कि, दूसरों को खोने के मुकाबले खुद को खोने का दर्द बहुत अधिक होता है।।
रोज की तरह आज भी कुछ बिछड़े हुए अजीजों की याद में खोया हुआ था,
तब याद आयी उस बिछड़े हुए विनीत की भी, जो हसमुख था,
कभी उदास नही होता था,
कभी किसी बात की इतनी चिंता नही करता था,
जिसको किसी के आने या जाने से कोई फर्क नही पड़ता था,
जिसको चिंता नही थी कि कोई उसके बारे में क्या सोचता है,
जो अपनी धुन में मग्न रहता था,
जिसका मन एकाग्र था,
जो ज्यादा सोचता नही था,
जिसको हसने के लिए झूठी मुस्कान की जरूरत नही थी,
आज वो विनीत खो गया है,
इन विनीत को दूसरों के दूर जाने का दुख भी है,
खुद को खो देने की पीड़ा भी है,
और मन की एकाग्रता खंडित होने का कष्ट भी है।
लेकिन खुशी सिर्फ और सिर्फ इस बात की है कि,, कभी ना हार मानने का जो जज्बा उस खोये हुए विनीत में था वो इस विनीत में भी है।
अटल जी की ये कविता उस विनीत को भी याद थी, और ये विनीत भी उन पंक्तियों को भूला नही है,
टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी,
अंतर को चीर व्यथा पलको पर ठिठकी,
हार नही मानूंगा, रार नई ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ,गीत नया गाता हूँ।
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